Saturday 21 May 2011

दिवंगत प्रचारक - स्व. श्री जयदेव जी पाठक


स्वर्गीय श्री जयदेव जी पाठक
जन्म - जन्माष्टमी-1924   स्वर्गवास - 15 जुलाई, 2006

       विक्रम संवत 1981 की जन्माष्टमी (ईस्वी सन् 1924) के दिन हिण्डौन के ग्राम फाजिलाबाद में श्रीमति गुलाबदेवी की कोख से जयदेव जी पाठक का जन्म हुआ । उनके पिता का नाम जगनलाल शर्मा था और वे अध्यापक थे । शैशवावस्था में ही उन्हें मातृ-सुख से वंचित होना पडा । हिण्डौन से सातवीं कक्षा उतीर्ण कर वे जयपुर आ गये तथा 1942 में प्रथम श्रेणी में मैट्रिक कक्षा पास की । उसी समय देश में भारत छोडो आन्दोलन प्रारम्भ हुआ और पाठक जी उसमें कूद पडे । इसका घर के लोगो ने विरोध किया तो उन्होने घर ही छोड दिया । वे ऐसे उत्कट स्वाभिमानी थे कि एक बार घर छोडा तो फिर वापस घर गये ही नही । उनके कर्ममय जीवन का प्रारम्भ हो चुका था । भारत छोडो आन्दोलन में कर्मठता और पूर्ण सक्रियता से उन्होने भाग लिया । भोजन कभी मिल गया तो कर लिया अन्यथा चना चबेना खा कर गुजरा कर लिया । सोने के लिए कही पर जगह नही मिली तो रेल्वे स्टेशन के प्लेट फार्म पर ही सो लिए, लेकिन देश भक्ति की चिन्गारी को कभी बुझने नही दिया ।

       उक्त आन्दोलन जब समाप्त हुआ तो वही प्रदीप्त चिन्गारी पाठक जी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में ले आई । जयपुर में संघ का काम सत्संग नाम से 1942 में प्रारम्भ हो चुका था । 4 अप्रैल, 1944 से जयदेव जी पाठक संघ की शाखा में जाने लगे । उसी समय स्वर्गीय पण्डित बच्छराज जी व्यास जो नागपूर में वकालात करते थे, राजस्थान में संघ कार्य की वृद्धि के लिए प्रचारक बनकर आये । बस मणि-कांचन याग हो गया । पाठक जी जबर्दस्त उत्साह के साथ में व्यक्ति निर्माण के काम में जुट गये । उनका जोश उस समय देखने लायक था । इसी जोश के कारण प्रारम्भ में तो उनको खुफिया विभाग का कोई जासूस समझ लिया गया परन्तु यह भ्रम शीघ्र ही दूर हो गया । 1946 में जयदेव जी संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बन गये । साठ वर्ष के प्रचारक जीवन में एक खण्ड संघ पर लगा पहला प्रतिबंध हटने के बाद आया । संगठन की आर्थिक स्थिति डांवाडोल होने के कारण कुछ प्रचारकों को उस समय वापस लौटकर नौकरी करनी पडी । पाठक जी भी 1950 में अध्यापक बन हो गये थे । सरकारी नौकरी के अलावा उनका शेष समय संघ कार्य की वृद्धि के लिए ही व्यतीत होता था । बारह वर्ष तक सरकारी नौकरी करने के बाद 1962 में त्याग पत्र दें वे पूर्ण रूप से संघमय हो गये । प्रारम्भ में 1962 से 1963 उदयपुर व डूंगरपुर जिले के जिला प्रचारक, 1963 से 1965 उदयपुर विभाग प्रचारक, 1965 से 1967 तक राजस्थान के बौद्धिक प्रमुख, 1967 से 1969 तक जयपुर नगर छोडकर जयपुर विभाग प्रचारक (जयपुर जिला, टोंक, धौलपुर, अलवर, भरतपुर व सवाईमाधोपुर जिला), 1969 से 1971 सीकर विभाग प्रचारक (सीकर व झुन्झुनूं जिला), 1972 से 1974 तक भरतपुर विभाग प्रचारक (भरतपुर, धौलपुर, सवाईमाधोपुर व अलवर जिला), 1974 से 2002 तक विद्या भारती राजस्थान और राजस्थान शिक्षक संघ प्रान्त संगठन मंत्री, 2002 से 14 जुलाई, 2004 तक विद्या भारती के मागदर्शक के रूप में कार्य किया । राजस्थान शिक्षक संघ के संस्थापक सदस्यो में से थे । 28 वर्ष के इस काल खण्ड में पाठक जी ने राजस्थान शिक्षक संघ को प्रान्त का सबसे बडा और प्रभावी संगठन बना दिया । इसके अलावा बालकों को संस्कारित करने वाले विद्यालयों (आदर्श विद्या मन्दिर) का भी पूरे प्रान्त में विस्तार कर दिया । स्वास्थ्य कमजोर रहने के कारण निधन के लगभग 4 चर्ष पूर्व शिक्षक संघ के काम से मुक्ति ले ली । 

       राष्ट्र के लिए सर्वस्व समर्पण तथा अपने लिए कुछ भी न लेने का पाठक जी का एक उत्कृष्ट उदाहरण था । राष्ट्र का एक पैसा भी अधिक स्वयं पर खर्च नही हो इसका वो पूरा ध्यान रखते थे । संघ शाखा पर प्रतिदिन उपस्थित होने का जो संकल्प उन्होने वर्ष 1944 में लिया था उसे आजीवन कठोरता से निभाया । अन्न जल वे तभी ग्रहण करते थे जब वे एक घण्टे की संघ-शाखा में हो आते थे । परम पवित्र भगवाध्वज को वे भगवान मानते थे और प्रातःकाल का चाय भी भगवद् दर्शन के बाद ही पीते थे । जीवन के अन्तिम क्षणो तक उनका जीवन कर्ममय रहा । उनके जाने से प्रारम्भ काल के ऐसे श्रेष्ठ कार्यकर्ताओं की पीढ़ी लगभग समाप्त हो गई जिन्होने अपने श्रेष्ठ और कर्ममय जीवन से अनगिनत कार्यकर्ताओं को प्रेरणा देकर उनके जीवन को संस्कारित किया ।

       15 जुलाई, 2006 को प्रातःकाल 7.00 बजे जयदेव जी पाठक के निधन के साथ एक और श्रेष्ठ कार्यकर्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नीवं में विसर्जित हो गया ।  




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