Saturday 21 May 2011

दिवंगत प्रचारक - स्व. श्री गोपीचन्द जी अरोड़ा


स्वर्गीय श्री गोपीचन्द जी अरोड़ा
जन्म - 1923      स्वर्गवास - जनवरी, 1981

       आपका जन्म सन् 1923 को विभाजित पंजाब प्रान्त में हुआ था। सभी लोग स्नेह से उन्हें गोपी जी कहते थे। गोपी जी का स्मरण करते ही हँसमुख स्वभाव वाले मस्तमौला एवं फक्कड़ व्यक्तित्व का स्मरण हो आता है। मूलतः विभाजित पंजाब प्रान्त के इस प्रचारक कार्यकर्ता का स्मरण उस समय के कार्यकर्ता जब भी करते हैं उनके मानस में नाटे कद के फुर्तिले एवं जुझारू कार्यकर्ता की छवि अपना स्थान ले लेती है।

       राजस्थान के अनेकों जिलों में (बाड़मेर, श्रीगंगानगर, अलवर, झुन्झुनूं) प्रचारक के रूप में कार्य करते हुए 1978-79 में पाली में सह विभाग प्रचारक तथा 1979-81 में पाली विभाग प्रचारक के रूप में कार्य किया। जनवरी 1981 में सिरोही नगर में माननीय यादवराव जी जोशी का कार्यक्रम था दिन भर कार्यक्रम की व्यवस्था में मार्गदर्शन करते रहें। सायंकाल सार्वजनिक कार्यक्रम और रात्रि में कार्यकर्ता बैठक में पूर्ण मनोयोग के साथ उपस्थित रहे तथा देर रात्रि में उनको हृदयाघात हुआ इसके पश्चात चिकित्सा भी उपलब्ध करवाई गई परन्तु इनके जीवन को नही बचाया जा सका। 

       राजस्थान प्रान्त में घोष निर्माण करने वाले कार्यकर्ताओं में उनका प्रमुख स्थान था। वे स्वयं घोष के विभिन्न वाद्यों के अच्छे जानकार होने के साथ ही सैंकड़ो अन्य स्वयंसेवकों को उन्होंने घोष की दृष्टि से प्रशिक्षित किया। घोष का नेतृत्व करते हुए उनके हाथ में घोष दण्ड ऐसे चलता था मानों घोष दण्ड उनके निर्देशों का पालन कर रहा हो।

       घोष के साथ-साथ वे एक अच्छे शिक्षक एवं विभिन्न शारीरिक कार्यक्रमों के भी अच्छे जानकार थे। दण्डयुद्ध एवं वेत्र चर्म उनके प्रिय विषय थे। एक के विरूद्ध अनेक के संघर्ष में गोपी जी का दण्ड संचालन देखने के लायक होता था। 

       मित्रवत् एवं अंतरंग सम्बन्ध उनके द्वारा कार्य विस्तार के आधार रहे है। वे बड़े ही सरल एवं सामान्य व्यक्तित्व वाले कार्यकर्ता थे। उनका विचार था कि तत्वज्ञान की अपेक्षा सामान्य तथा सरल आत्मीय व्यवहार द्वारा कार्यकर्ताओं को अधिक जोड़ा जा सकता है। अपने पूरे कार्यकाल में उन्होंने इसी सिद्धान्त का पालन किया। कार्यकर्ताओं से उनके बड़े ही घनिष्ट सम्बन्ध रहे। 

       वे बड़े ही कुशल योजनाकार एवं प्रबंधक थे। चाहे बड़ा खेल हो, रातो-रात पांडाल खड़ा करना हो या कोई अन्य व्यवस्था, उनके लिए बांये हाथ का खेल होता था। झुन्झुनूं संघ शिक्षा वर्ग में सायंकाल अंधड़ से उड़े पांडाल को दूसरे दिन प्रातःकाल प्रातःस्मरण तक खड़ा करना उनकी योजना का ही कमाल था।

       अन्य प्रचारकों की तरह उन्होंने भी अपने व्यक्तिगत स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान नही दिया। परिणाम स्वरूप अस्वस्थतता ने उन्हें आ घेरा।

       आज गोपी जी हमारे मध्य नहीं है, लेकिन उनकी स्मृति, उनका कर्तृत्व एवं उनकी योजकता कार्यकर्ताओं को सदैव प्रेरित करती रहेगी।



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