Saturday 21 May 2011

दिवंगत प्रचारक - स्व .श्री ठाकुरदास जी टंडन


स्वर्गीय ठाकुरदास जी टंडन
जन्म - 19 नवम्बर, 1927  स्वर्गवास - 10 मई, 1996

       आपने पूरा जीवन राष्ट्र की एकता व संगठन में लगा दिया। आपका जन्म हैदराबाद (सिन्ध) के प्रसिद्ध लकड़ी के व्यवसायी स्वर्गीय श्री टहलराम जी के घर में 19 नवम्बर 1927 को हुआ । छः भाईयो में आप सबसे छोटे थे । बचपन से ही आपने बड़े भाई से प्रेरणा लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में जाना प्रारम्भ किया । आपने सिन्ध के प्रसिद्ध विद्यालय नवलराय हीरानन्द अकादमी में पढ़ाई की । 1944 में मैट्रिक की परीक्षा पास की, इन्टर साईन्स में प्रवेश लिया । संस्कृत भाषा में भी शिक्षा ली थी । 

       1945 में हैदराबाद किले में बाल शाखा पर आक्रमण हुआ जिसमें श्री नेणूराम शर्मा शहीद हुए । उस आक्रमण में आपको भी चोटें लगी । आप दृढ़ता के साथ संघ कार्य में लगे रहे । 1946 में प्रथम वर्ष शिक्षण वर्ग, मेरठ में किया । शिक्षण वर्ग के दौरान पूज्य माताजी के निधन का सामाचार सुनकर भी आप वापस घर पर नही गये । 1947 में द्वितीय वर्ष और 1953 में तृतीय वर्ष का शिक्षण प्राप्त किया ।

        श्री ठाकुरदास जी 1946 में प्रचारक बनें । उस समय उनके बड़े भाई श्री मोटमल जी भी प्रचारक थे जो बाद में गृहस्थ जीवन में लौट गये थे । श्री ठाकुरदास जी 1947 में भारत आने पर अजमेर में प्रचारक रहे । तब से लेकर राजस्थान में विभिन्न दायित्व सम्हालते रहे ।

       1949 से 1963 तक उदयपुर विभाग प्रचारक, 1963 से 1971 तक बीकोनर विभाग प्रचारक, 1971 से 1977 तक कोटा विभाग प्रचारक, 1977 से 1981 तक जोधपुर विभाग प्रचारक, 1981 से 1983 तक अजमेर विभाग प्रचारक, 1983 से 1984 तक उदयपुर संभाग प्रचारक रहे । इसके बाद सेवा भारती का काम सम्हाला और लगभग 10 वर्षो तक भारतीय सिन्धु सभा का राजस्थान का काम भी देखा । भारतीय सिन्धु सभा की केन्द्रीय कार्यकारिणी में सदस्य भी रहें । सिन्धु सभा राजस्थान के तीन प्रान्तीय सम्मेलन एवं स्मारिका का प्रकाशन आपके मार्गदर्शन में सफलता पूर्वक हुआ ।

        सभी लोग उन्हें आत्मीयता से भाऊ जी कहते थे। टण्डन जी का हँसमुख एंव मस्त जीवन उनका मृदु व्यवहार एवं परिश्रम की पराकाष्ठा सम्पूर्ण राजस्थान प्रान्त के स्वयंसेवको को 40 वर्ष से भी अधिक समय तक प्रेरित करती रही। वे राजस्थान में संघ कार्य के आधार स्तम्भ थे। उन्होने राजस्थान के अधिकांश विभागो में प्रचारक के रूप में कार्य किया। भारी शरीर उनकी कार्य क्षमता में कभी बाधक नहीं बना। उनके अखण्ड प्रवास क्रम का ही परिणाम था कि कोटा विभाग में सूरज जी भाई साहब के द्वारा छोडी गई 300 शाखाऐं कुछ ही वर्षो में 450 तक पहुँच गई। टण्डन जी उत्साह व तेज की प्रतिमूर्ति थे। उन्होने अपने जीवन से प्रेरित कर हजारो हजारो स्वयंसेवकों को संघ निष्ठ बनाया। श्री ठाकुरदास जी जनसम्पर्क बड़ा ही व्यापक था। 

       वे होम्योपैथी के सफल चिकित्सक थे । इस चिकित्सा कर्म का उन्होने सम्पर्क के माध्यम के रूप में प्रयोग किया । आपके हाथो से कई असाध्य रोगी ठीक हुए थे । ब्रह्मचारी रहकर सन्यासियो जैसा साधारण जीवन बिताकर आप सिंधी समाज एवं राष्ट्र सेवा में समर्पण भाव से सेवा कर रहे थे । राजस्थान सिन्धी अकादमी में ऐसे त्यागी, समाज एवं राष्ट्र सेवक को 1995 में सिन्धु रत्न की उपाधि देकर गौरावान्वित किया । छोटे-2 गांवों तक उनका व्यापक सम्पर्क रहा । महिलाएँ व बच्चे उनकी प्रतीक्षा करते थे । वास्तव में उनका सादा एवं सरल जीवन सभी को बहुत भाया । वे चूल्हे तक पहुँच वाले प्रचारक रहे। उनके बौद्धिक की शैली भी सामान्यजन से वार्तालाप वाली रही । सरल शब्दों में संघ का तत्वज्ञान कार्यकर्ताओं और लोगो के गले उतारना उनकी विशेषता थी। उनके व्यक्तित्व एवं कर्त्त्व का ही परिणाम था कि वे एक सफल प्रचारक कहलाएं।

       श्री ठाकुरदास जी का पत्र लेखन अखण्ड रूप ये चलता था। पत्र लेखन के माध्यम से उनका कार्यकर्ताओं से जीवन्त सम्पर्क रहता था। उनका लेख बड़ा सुन्दर था। छोटे-2 मोतियों जैसे अक्षरों में लिखे उनके पत्र आज भी कई स्वयंसेवको के पास सुरक्षित मिल सकते है।  खाने पीने के शौकिन ठाकुरदास जी के पास जाने वाले स्वयंसेवकों को प्रसाद अवश्य मिलता था। बांटकर खाने का आनन्द उन्होने जीवन के अन्तिम क्षण तक उठाया।

       1984 तक आते-2 इस तपस्वी कार्यकर्ता का शरीर क्षीण हो गया । श्री टन्डन जी पार्किसन्स की बीमारी से पीडि़त थे इसके बावजूद शरीर की चिन्ता नही करते हुए कार्य में लगे रहते थे । 10 मई 1996 को स्वास्थ्य अधिक बिगड़ जाने के कारण चिकित्सालय में भर्ती करवाया गया । जहाँ वे लगभग पांच घन्टे ही रहे । 10 मई, 1996 रात्रि 11.30 बजे काल ने उन्हें हमसे छीन लिया । 11 मई शनिवार सायंकाल अन्तयेष्ठि सम्पन्न हुई ।

       श्री ठाकुरदास जी का कार्य, विचार, स्वभाव, मौलिकता, उनकी मस्ती, सादगी एवं सरल जीवन राजस्थान के स्वयंसेवको के लिए अविस्मरणीय व प्रेरक रहेगा।




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