Saturday 21 May 2011

दिवंगत प्रचारक - स्व. श्री लक्ष्मणसिंह जी शेखावत


स्वर्गीय श्री लक्ष्मणसिंह जी शेखावत
जन्म - 8 अगस्त, 1927  स्वर्गवास - 29 दिसम्बर, 2000

          श्री लक्ष्मण सिंह जी शेखावत का जन्म सन् 1926 में झुन्झुनूं जिले के टांई ग्राम में हुआ। ये सन् 1944 में संघ के स्वयंसेवक बने और 1947 में संघ के प्रचारक बनें।

  • 1949 से 1961 तक सीकर विभाग में प्रचारक, 
  • 1962 से 1963 तक चूरू जिला व श्रीगंगानगर जिला प्रचारक, 
  • 1963 से 1977 तक उदयपुर विभाग प्रचारक, 
  • 1978 से 1983 तक पाली विभाग प्रचारक, 
  • 1984 से 1987 तक जोधपुर संभाग प्रचारक, 
  • 1987 से 1992 तक राजस्थान प्रान्त के सह प्रान्त प्रचारक
  • 1992 से 1994 जोधपुर प्रान्त प्रचारक



              1994 से 29 दिसम्बर, 2000 (निधन के पूर्व तक) राजस्थान क्षेत्र के संपर्क प्रमुख तथा राजनैतिक क्षेत्र में मार्गदर्शक रहे। 


    • इसके साथ ही अखिल भारतीय किसान संघ के अ.भा.मंत्री भी रहे।


              श्री लक्ष्मणसिंह जी के मार्गदर्शन में ही कोटा में किसान संघ का प्रथम सफल अधिवेशन सम्पन्न हुआ। अपने जोधपुर प्रान्त के कार्यकाल में सीमाजन कल्याण समिति के गठन का श्रेय भी उन्हीं को है। सेना के बड़े अधिकारियों से उनका विशेष परिचय रहा। उनके सम्बन्ध बड़े गहरे व आत्मीय पूर्ण रहे। परिणाम स्वरूप मेवाड़ के महाराणा भगवत सिंह जी व गढ़ी के राव इन्द्रजीत सिंह जी जैसे लोग विश्व हिन्दू परिषद से जुड़े।

              यद्यपि लक्ष्मण सिंह जी शेखावत की औपचारिक शिक्षा बहुत अधिक नहीं हुई थी, तथापि जीवन के अनुभवों से जो ज्ञान एवं विचारशीलता उनमें आई, इस कारण उसका अभाव कभी भी दिखाई नहीं दिया। कर्तृत्वशीलता एवं सम्पर्ण की वे जीवन्त प्रतिमा थे। स्वयंसेवकों एवं कार्यकर्ताओं के साथ उनके आत्मीय सम्बन्धों ने उन्हें प्रत्येक क्षेत्र में कभी भी कार्यकर्ताओं का अभाव नहीं होने दिया। स्वयंसेवकों की टोलिया खड़ी कर राजस्थान के संघ कार्य विस्तार में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

             श्री लक्ष्मण सिंह जी सदैव  संघर्षशील रहे व कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन किया। चुनौतियों का सामना करने से वे कभी पीछे नहीं रहे। आपातकाल में पूरे प्रान्त में घूम घूमकर उन्होने शासन के अन्याय के विरूद्ध स्वयंसेवकों को एकत्र किया व परिस्थिति का प्रतिकार किया।

             श्री लक्ष्मणसिंह जी हमारे मध्य नहीं है। 29 दिसम्बर, 2000 में वे दिवंगत हुए। लेकिन उनकी कर्मठता, आत्मीयता एवं जुझारूपन आज भी राजस्थान में कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरक है।

    No comments:

    Post a Comment