Saturday 21 May 2011

दिवंगत प्रचारक - स्व.श्री सूरज प्रकाश जी


स्वर्गीय श्री सूरज प्रकाश जी
जन्म - 1922    स्वर्गवास - 29 जुलाई, 1973

       श्री सूर्यप्रकाश जी मूलतः पंजाब के स्वयंसेवक थे। 1949 में वे राजस्थान में प्रचारक के रूप में आये थे। 1949 से 1959 तक वे बीकानेर विभाग में तथा 1959 से 1971 तक कोटा विभाग में प्रचारक रहे। पूरे क्षेत्र में सभी लोग उन्हें सूरज जी भाई साहब के नाम से सम्बोधित करते थे। 

       सूरज जी भाई साहब का राजस्थान के संघ कार्य विस्तार में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वे जब कोटा विभाग प्रचारक बनकर आये तो पूरे विभाग में 25 शाखाऐं थी। लेकिन उनके कठोर परिश्रम एवं व्यापक जनसम्पर्क के कारण शीघ्र ही शाखाओं की संख्या 300 हो गई। उन्होंने छोटे-2 गांवों में शाखाओं का विस्तार किया। कोटा विभाग में उनके द्वारा प्रारम्भ किये गये रात्रि शाखा के प्रयोग को पूरे देश में प्रशंसा मिली। उन्होंने सामान्यजन को जोड़कर शाखाओं का विस्तार किया। साधनों के अभाव में उनका प्रवास पैदल एवं साईकिल पर भी चलता था। सामान्य भोजन एवं सामान्य व्यवस्था उनका स्वभाव रहा।

       सूरज जी भाई साहब तेजस्वी वक्ता एवं संघ विचार के अधिकारिक प्रवक्ता थे। जिस क्षेत्र में उन्होंने कार्य किया उस क्षेत्र की बोली को अपनाया। आत्मीयता निर्माण करने का उनका यह विशिष्ट तरीका था। इसी कारण सभी लोग व कार्यकर्ता उन्हें अपने बीच का ही आदमी समझते थे।

       स्वभाव से कठोर परिश्रमी एवं हिसाब किताब के मामले में प्रामाणिक, उनके व्यक्तित्व की विशेषताऐं थी। उनके बारे में प्रसिद्ध था कि रात्रि को लिखते लिखते जब तक कलम उनके हाथ से छूट नही जाती, वे सोते नहीं थे। सभी बातें चाहे वो शाखावृत्त हो, हिसाब-किताब हो या पत्र लेखन हो उनके व्यवस्थित जीवन का उसमें दिग्दर्शन होता था।

        सूरज जी भाई साहब ने किसी के कष्ट को देखकर व्याकुल होने वाला हृदय पाया था। इसी कारण एक एक स्वयंसेवक की वे व्यक्तिगत चिन्ता करते थे। अपने सहयोगी प्रचारकों से तथा कार्यकर्ताओं से उनका जीवन्त सम्पर्क रहा। दूसरो का दुःख देखकर दुःखी होने वाले सूरज जी भाई साहब दुष्टों के लिए बड़े कठोर थे। कोटा क्षेत्र के गुण्डे-बदमाश सूरज जी भाई साहब के नाम से थरथराते थे। 

       कठोर परिश्रमी एवं तेजस्वी सूरज जी भाईसाहब को नियति ने कैंसर दे दिया। कैंसर घोषित होने के बाद भी उनका प्रवास क्रम थमा नही। उन्होने कैंसर की पीड़ा को कभी अपने ऊपर हावी नही होने दिया। 29 जुलाई 1973 को  श्री सूरज जी भाई साहब हम सभी को छोड़कर चले  गये।

       उनका कर्तृत्व, उनका कार्य, उनका स्वभाव तथा उनकी ध्येय निष्ठा  आज भी स्वयंसेवकों के मन में सुरभि बनकर महक रही है।



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