Saturday 21 May 2011

दिवंगत प्रचारक - स्व. श्री कृष्ण चन्द्र जी भार्गव


श्री कृष्णचन्द्र जी भार्गव
जन्म - 27 जुलाई, 1926  स्वर्गवास - 14 मई, 2011

व्यक्तिगत परिचय
       आपका जन्म 27 जुलाई, 1926 को अजमेर शहर में श्री कन्हैयालाल जी भार्गव के घर पर हुआ। आप बचपन से ही होनहार और देश भक्त थे। आपने आभियांत्रिकी में डिप्लोमा की शिक्षा प्राप्त की थी।

  • संघ प्रवेश के सन्दर्भ में
       स्वयंसेवक बनने के पूर्व आप क्रिकेट क्लब में खेलते थे। उनमें कुछ लोगो के संघ में जाने के कारण आप भी संघ की शाखा में जाने लग गये और इस प्रकार से सितम्बर, 1941 में आप संघ के स्वयंसेवक बनें । उस समय अजमेर में चन्द्र कुंड शाखा [कुत्ता खाना] लगती थी।  अजमेर में संघ कार्य का प्रारम्भ भी 1941 में ही श्री विश्वनाथ जी लिमये (प्रचारक) के प्रयासों से हुआ था। परिवार में छोटे भाईयों का संघ की शाखा में जाना होता था परन्तु जब भैय्या जी ने  जाना प्रारम्भ किया तो उनका शाखा में जाना बन्द हो गया। 

  • संघ शिक्षण
        1943 में प्रथम वर्ष मेरठ (उत्तर प्रदेश) से किया था उस समय इनके साथ श्री गिरिराज जी शर्मा (दादा भाई), श्री नारायण सिंह जी-उदयपुरवाटी,  पंत जी-अजमेर से थे।

         1944 में द्वितीय वर्ष मेरठ से किया था उस समय आपके साथ श्री शिवनारायण मेहरा-अजमेर थे।

       1946 में तृतीय वर्ष नागपुर से किया उस समय इनके साथ श्री सुन्दर सिंह जी भण्डारी, श्री लालकृष्ण जी आडवाणी, श्री भंवरलाल जी-अजमेर, श्री सत्यनारायण जी-अजमेर थे। 

  • संघ दायित्व के सन्दर्भ में
  • 1946 से 1947 - बीकानेर जिला प्रचारक
       बीकानेर में विजयादशमी का बहुत ही सफल कार्यक्रम रहा और इस कार्यक्रम के बाद ही आपको जोधपुर का जिला प्रचारक बनाकर भेजा गया।

  • 1947 से 1948 - जोधपुर जिला प्रचारक
       इसी दौरान 1948 में पूजनीय महात्मा गांधी जी की हत्या हो जाने के कारण और संघ को प्रतिबंधित कर देने के कारण आपको गिरफ्तार कर बीकानेर जेल में रखा गया।  
  • 1949 से 1952 - चूरू जिला प्रचारक 

          दायित्व में वृद्धि करते हुए आपको विभाग प्रचारक का दायित्व सौंपा गया।

  • 1952 से 1958 - अजमेर विभाग प्रचारक
  • 1958 से 1977 - जोधपुर विभाग प्रचारक
       पुनः दायित्व में वृद्धि करते हुए आपको राजस्थान प्रान्त के सह प्रान्त प्रचारक और प्रान्त प्रचारक का दायित्व सौंपा गया।
       सितम्बर, 1969 में मा. कृष्णचन्द्र जी भार्गव (भैया जी) सह प्रान्त प्रचारक बनकर असम गये थे। वायुयान उनके लिए असुविधाजनक होने के कारण वापस राजस्थान लौटना पड़ा। लगभग 6-7 माह ही आप उस प्रान्त में रह पाये थे। (यह सारी जानकारी गुवाहाटी से आए एक पत्र के आधार पर है।)
  • 1977 से 1987 - सह प्रान्त प्रचारक, राजस्थान
  • 1987 से 1992 - प्रान्त प्रचारक, राजस्थान
       सन् 1992 में राजस्थान प्रान्त को 3 भागों में बाँटकर प्रान्त रचना की गई और उसको उत्तर  पश्चिम क्षेत्र नाम दिया गया। इस क्षेत्र में (1) जयपुर प्रान्त (2) जोधपुर प्रान्त (3) चित्तोड़  प्रान्त आते है। राजस्थान क्षेत्र बन जाने के बाद आप इसके क्षेत्र प्रचारक बनें।
  • 1992 से 1998 - क्षेत्र प्रचारक, उत्तर  पश्चिम क्षेत्र (राजस्थान)
  • 1998 से 1999 - क्षेत्र सेवा प्रमुख  
  • 1999 से मार्च 2008 - क्षेत्र प्रचारक प्रमुख रहे। 
       आपके स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए ऊपर के अधिकारियो ने स्वास्थ्य लाभ की दृष्टि से आपको सभी दायित्वो से मुक्त करते हुए केवल प्रचारक रखा और इस प्रकार आप मार्च 2008 से प्रचारक रहते हुए स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर रहे थे। इसी दौरान आपका केन्द्र जोधपुर हुआ।

       विगत् कुछ दिनों से आप जोधपुर के मथुरा दास माथुर राजकीय चिकित्सालय में भर्ती थे और आपका ईलाज चल रहा था। आज दिनांक - 14 मई, शनिवार 2011 को रात्रि 8.45 पर स्वर्गवास हो गया है।


संस्मरण

       उस समय साधनों का और अर्थ का अभाव था जिसके चलते साईकिलों से ही जाना पड़ता था। आप अजमेर से किशनगढ़, नसीराबाद आदि स्थानों पर साईकिल से ही प्रवास करते थे।

        संघ का प्रचारक बनने के पूर्व आपके पास संघ के विभिन्न दायित्व रहे है।

      1942 के समय अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन हुआ था। सारा ही आन्दोलन दिशाहीन था और छात्रों के भरोसे था। उस समय भैय्या जी ने भी इसमें भाग लिया था। उस समय प्रमुख दल कांग्रेस ही था, बाकी सब लोग उसके साथ ही थे। 

       1942 की सर्दियों की छुट्टियों (दिसम्बर मास) में अजमेर के फाई सागर रोड़ पर आना सागर स्थान पर शीत शिविर लगा जिसमें लगभग 350-400 संख्या रही थी। उस समय का जो राजस्थान हुआ करता था उससे यह संख्या रही थी। उस समय चित्तौड़गढ़, कोटा, भरतपुर आदि स्थान राजस्थान के साथ में नहीं थे। भैय्या जी भी उस शिविर में थे।

       उस समय प्रचारक के बारे में लोगो को ज्यादा मालूम भी नही था और विश्वास भी नही था।  

       आप 1946 में प्रचारक निकले। प्रचारक निकलने के बाद से लेकर आपको ऊपर लिखित दायित्व रहे। जब आपको बीकानेर जिला प्रचारक बनाया गया उस समय मा.सुन्दर सिंह जी भण्डारी जोधपुर के विभाग प्रचारक थे। प्रचारक बनने के बाद भी अर्थ का अभाव रहता था, घरों पर भोजन होता था । कभी होता था और कभी नही होता था, इस प्रकार की स्थिति रहती थी। 1946 में पहली साईकिल 20 रूपये में मा.भण्डारी जी ने भैय्या जी को संघ के काम के विस्तार के लिए दिलवाई थी। अर्थ के अभाव के कारण जिले में साईकिल से ही जाना होता था।  अजमेर में जब विभाग प्रचारक बनकर आये तब भी अजमेर से देवली का प्रवास साईकिल से ही किया करते थे।  भैय्या जी अजमेर विभाग के प्रचारक के अलावा भीलवाड़ा विभाग (भीलवाड़ा और चित्तौड़ जिला) के भी प्रचारक रहे, यह विभाग रचना (1957-1958) लगभग 1 वर्ष तक रही। उस समय भीलवाड़ा विभाग में कुल 6 ही शाखाऐं थी। इसके बाद श्री ठाकुरदास जी टण्डन अजमेर के विभाग प्रचारक बनकर आ गये। उस समय अजमेर विभाग यानि उदयपुर और अजमेर विभाग मिलाकर विभाग होता था।

       1946 में जब आप प्रचारक बनें उस समय राजस्थान के कुल 3 जिले थे और तीनों जिलों को मिलाकर एक विभाग बनाया गया था और यह विभाग (राजस्थान) दिल्ली प्रान्त के अन्तर्गत आता था। मा.बसन्तराव जी ओक दिल्ली के प्रान्त प्रचारक थे। उस समय अजमेर के प्रचारक श्री विश्वनाथ जी लिमये थे। 1946 तक राजस्थान के तीन जिले (जयपुर, जोधपुर, उदयपुर) थे और 1946 में यही तीनों जिले  3 विभाग बन गये । 

       1948 में पू.महात्मा गांधी जी की हत्या के बाद संघ को प्रतिबंधित कर दिया गया ।  उस समय समाज के लोग संघ वालों को गांधी जी के हत्यारे की दृष्टि से देखते थे। इस प्रकार की कठिन परिस्थिति उस समय थी। उस समय संघचालकों को और कार्यवाहों को ज्यादा पकड़ा गया। प्रचारक के बारे में ज्ञान नहीं था। भैय्या जी का 1948 के प्रतिबंध के समय जेल में जाना हुआ था और 17 महिने के लगभग जेल में रहे थे।  भैय्या जी के साथ जेल में बीकानेर से श्री चान्दरतन जी आचार्य, श्री कन्हैय्यालाल जी और लक्ष्मीनारायण जी भी थे।  अकेली बैरक में इनको रखा जाता था। भोजन व्यवस्था जेल के कैदी किया करते थे। भोजन भी इन्हें ठीक प्रकार का नहीं दिया जाता था। जेलर से शिकायत करने पर उसने इनको राजनैतिक कैदी की मान्यता दी, तब जाकर भोजन व्यवस्था ठीक प्रकार से हुई। 4-5 महिने तक सभी साथ साथ ही थे। इसके बाद और लोग तो छूट गये परन्तु भैय्या जी जेल के अन्दर ही रहे।  1949 में प्रतिबंध हटने के बाद राजस्थान स्वतंत्र प्रान्त बन गया था और मा.पण्डित लेखराज जी शर्मा प्रान्त प्रचारक बनें। 

        सन् 1952 के गौ रक्षा हस्ताक्षर के अभियान के समय भैय्या जी पुष्कर में थे। इन्होने पुष्कर मेले में हस्ताक्षर करवाये और वहां प्रदर्शनी लगाई। सरकार ने इसका विरोध किया था जिसके कारण इनको वह प्रदर्शनी हटानी पड़ी। उस समय अजमेर अलग से स्टेट थी। बहुत बड़ी मात्रा में वहां पर हस्ताक्षर करवाये गए।  सरकार ने इस बात का भी पीछा किया कि कहीं पर एक ही व्यक्ति तो हस्ताक्षर नहीं करवा रहा है। अधिकतम गांवो के लोगो के हस्ताक्षर करवाये गए क्योंकि उस मेले कई गांवो के लोग आए थे।

       1952 में मा.सुन्दर सिंह जी भण्डारी के जनसंघ में चले जाने के बाद आपको अजमेर का विभाग प्रचारक बनाया गया। 

       सन् 1953 के गौ रक्षा के आन्दोलन में भैय्या जी का दिल्ली भी जाना हुआ था । उस समय सभी प्रान्तों का प्रतिनिधित्व रहा था। 

       सन् 1956 में प.पू.श्री गुरूजी का 51वां जन्म दिवस समारोह मनाया गया था। इसके निमित्त भैय्या जी और अन्य कार्यकर्ता अजमेर के माने हुए कांग्रेसी श्री मुकुट बिहारी लाल जी भार्गव के यहां राशि एकत्र करने गए। तब उनने कहा कि वैसे मैं कांग्रेसी हूं और आपकी पार्टी का नहीं हूं आपने जिस बड़े आदमी को स्टेज पर लगाया है उसके अनुरूप पैसा एकत्र करना नही तो अच्छा नही लगेगा।  उस समय वो कांग्रेस से लोकसभा सदस्य थे।  जब उनके पास गए थे तब तक अजमेर से अच्छी राशि एकत्र हो गई थी। प.पू.श्री गुरूजी के प्रति उनकी श्रद्धा भी थी।  

       1958 में  राजस्थान में विभाग रचना बदल कर 5 विभाग (अजमेर, जयपुर, बीकानेर, जोधपुर, उदयपुर) बना दिये।

       आपने प्रचारक बनने से पूर्व श्री विश्वनाथ जी लिमये (अजमेर के प्रचारक), मा. बच्छराज जी व्यास (राजस्थान के प्रचारक),  और प्रचारक बनने के बाद मा.सुन्दर सिंह जी भण्डारी (जोधपुर विभाग प्रचारक), मा. बसन्तराव जी ओक (प्रान्त प्रचारक, दिल्ली), पण्डित लेखराज जी शर्मा (प्रान्त प्रचारक, राजस्थान), मा.ब्रह्मदेव जी (प्रान्त प्रचारक, राजस्थान), मा.सोहन सिंह जी (प्रान्त प्रचारक, राजस्थान) के सानिध्य में राजस्थान में केवल काम ही नहीं किया अपितु संघ कार्य को गति भी प्रदान करी। 

          विभाग प्रचारक रहते हुए भैय्या जी का प.पू.श्री गुरूजी के साथ भी रहना हुआ।
          भैय्या जी अच्छे गीत गायक, बांसुरी वादक और अच्छे दण्ड के शिक्षक थे। 

       भैय्या जी जब तृतीय वर्ष में गए थे, लगभग उसी समय घोष का प्रारम्भ हुआ था। इनने भी आनक में लगभग 1-2 रचनाऐं सीखी थी।  इनके साथ आनन्द जी और माथुर जी राजस्थान से थे। इससे पूर्व भी भैय्या जी थोड़ा आनक बजाते थे। लगभग उसी समय राजस्थान में घोष का प्रारम्भ हुआ था। 

       1975 के आपातकाल के समय भी भैय्या जी का जेल में जाना हुआ। जेल में जाने के पूर्व वेश बदलकर रहते थे। बचपन से जिस सी.आई.डी. के व्यक्ति ने इन्हें देखा वो भी इनको नहीं पहचान सका।  दाढ़ी-मूछ बढ़ाकर, कपडे बदलकर रहते थे। ऐसा लगता था कि कोई मुसलमान जा रहा है। कुछ समय बाद जयपुर में पकड़े गये और लगभग 7-8 दिन इनको जयपुर जेल में रखकर श्री भंवरलाल जी के प्रयासों के बाद इनको जोधपुर जेल में भेज दिया गया।  जोधपुर जेल में लगभग 350 सत्याग्रही और 25 मीसा बन्दी थे। भैय्या जी को मीसा कानून में बंद किया गया था। 

       15 नवम्बर, 1987 में मा.सोहन सिंह जी और आपके सानिध्य में राजस्थान प्रान्त का विराट हिन्दू सम्मेलन और पथ संचलन भी हुआ था जिसमें पूरे राजस्थान से उस समय 1,919 स्थानों से 53,022 स्वयंसेवक और जनता के लोग उपस्थित थे। पथ संचलन के कार्यक्रम में 9,886 स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में  कदम से कदम मिलाकर चल रहे थे वो कार्यक्रम उस समय का देश का सबसे बड़ा कार्यक्रम था।    



प्रकाशित -  26 May, 2011
संस्मरण
[सुमधुर स्वर के धनी]

        सन् 1962 में 2 अप्रैल को नागपुर में स्मृति मन्दिर का उदघाटन था। उसमें मुख्य काव्य गीत प्रसिद्ध गायक सुधीर फड़के का होना था। घण्टे भर पहले श्री सुधीर फड़के दौड़े-दौड़े किशन भैया जी के पास आये। भैया जी ! गीत की राग देख लो। भैया जी ने गाकर सुनाया और राग जम गई। वही गीत गाया गया। गीत था.............

लो श्रद्धान्जलि राष्ट्र पुरूष, कोटि हृदय के कँज खिले है।
आज तुम्हारी पूजा करने, सेतु हिमाचल संघ मिले है।।


                                                                     लालचन्द बेली  
                                                                      निवासी-शाहपुरा, जिला-भीलवाड़ा
                                                                  उपाध्यक्ष
                                                                      वन्दे मातरम् फाउन्डेशन




प्रकाशित -  27 May, 2011
संस्मरण
       घटना 1995 में उस समय की है जब विश्व हिन्दू परिषद द्वारा गंगा, गौ और भारत माता की विशाल यात्राओं का आयोजन सम्पूर्ण देश में किया जा रहा था।

        मैं उस समय अजमेर में जिला प्रचारक के दायित्व पर कार्यरत था। अजमेर के पटेल मैदान में विशाल धर्म सभा का आयोजन होना था। अच्छी तैयारी थी। सभा के पूर्व पटेल मैदान जाने के लिये सभी  प्रमुख लोग संघ कार्यालय - मातृ मंदिर आये। 

       उन दिनों मा. भैया जी, राजस्थान के क्षेत्र प्रचारक थे व उनका प्रवास अजमेर में चल रहा था। सभी ने भैया जी से अपने वाहन में बैठकर सभा में चलने हेतु आग्रह किया लेकिन भैया जी ने कहा ‘‘आप लोग चलिये मैं आता हूँ‘‘। फिर भैया जी ने मेरे से पूछा ‘‘आप सभा में चल रहे हो क्या ?‘‘ मैंने कहा ‘‘भैया जी जरूर चलूंगा, लेकिन आप तो इन वरिष्ठ जनों के साथ पधारिये।‘‘

       भैया जी ने कहा ‘‘अरे इन बड़े लोगों को जाने दो, हम साथ-साथ चलेंगे।‘‘ भैया जी मेरे साथ मोटर साईकिल पर बैठकर पटेल मैदान गये।

       इसी के साथ दूसरी बड़ी महत्वपूर्ण घटना जु़ड़ी है। उन दिनों बरसात का मौसम होने से मैं अपनी डिक्की में छाता साथ ले गया था। सोचा था अगर बरसात आई तो काम ले लेंगे। 

       मैं गाड़ी खड़ी करके अन्दर गया, जब तक भैया जी किसी स्थान पर बैठ चुके थे। मैंने सोचा भैया जी निश्चित रूप से कुर्सियों पर बड़े लोगों के बीच में ही बैठे होंगे, लेकिन काफी ढूँढने पर मुझे भैया जी सामान्य जनता के बीच में दरी पर बैठे हुए मिले। 

       मैं भी एक स्थान पर दरी पर बैठ गया। कुछ देर बाद बरसात आने लगी, मैंने तुरन्त छाता अपने ऊपर तान लिया, लेकिन दूसरे ही क्षण मुझे मा. भैया जी का ध्यान आया कि भैया जी भी तो भीग रहे हैं, मुझे उन पर छाता लगा देना चाहिए, अतः अपने स्थान से उठकर मैं भैया जी के पास आया व उन पर छाता तान दिया। उन्होंने देखा कि उनके ऊपर किसी ने छाता तान रखा है, उन्होंने ऊपर देखा तो मैं नजर आया, वे बोले - "भाई छाता बन्द करो", मैंने थोड़ी आना-कानी की व कहा ‘‘भैया जी बरसात से आप पूरे भीग जाओगे अतः इसे रहने दो।  "वे थोड़ा ऊँचे स्वर में बोले",  तो फिर सभी के लिये छाते लाओ तभी मेरे ऊपर छाता लगाओ। "आगे कहा" सामान्य जनता के बीच में अपने आपको विशेष दिखाना या विशेष सुविधा की अपेक्षा करना एक अच्छे स्वयंसेवक व कार्यकर्ता से अपेक्षित नहीं है।

       मैं नत-मस्तक था मेरे क्षेत्र प्रचारक जी के सामने। कितना संवेदनशील एवं समाज के प्रति अपनेपन वाला दृष्टिकोण था, उस महापुरूष का।

       

                                                                                           शिव प्रसाद
                                                                                            क्षेत्रीय संगठन मंत्री
                                                                                            विद्या भारती, राजस्थान




प्रकाशित -  29 जुलाई , 2011

असम में किशन भैया


       असम प्रदेश नाना समस्याओं से ग्रस्त है। समस्या समाधान के लिए संघ भी प्रयास कर रहा है। भारत के अन्य राज्यों से अनेक प्रचारक संघ काम के लिए असम में आये। इनमें से स्वर्गीय किशन भैया जी का यहाँ अल्पकालीन वास्तव्य अपनी छाप छोड़कर गया। सन् 1969 में किशन भैया असम में आये। सह प्रान्त प्रचारक का दायित्व था। मैं उस समय विभाग प्रचारक था। हमारा दोनो का केन्द्र जोरहाट होने के कारण उन से निकट का सम्पर्क रहा। भैया जी से मेरा पूर्व परिचय था ही। नागपूर में शारीरिक विभाग की बैठकों में उनसे मिलना होता था।
       नागपूर की बैठकों में उनका वंशीवादन सुनने में हम सदैव आनन्द लेते थे। बांस की लम्बी बांसुरी लेकर और कार्यालय में एकान्त स्थान में बैठकर वंशी के स्वरों के साथ भैया जी एक रूप होते थे। एक बार किसी कार्यकर्ता  का पैर गलती से भैया जी की बांसुरी पर गिरने से बांसुरी टूट गई। पूछताछ करने पर भी पता नहीं चला। मुझे याद है उस दिन सारा दिन रोते रहे। भोजन भी नहीं किया।
       असम में आने के बाद भैया जी के विविध गुणों का अनुभव हुआ। अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओं पर वे कभी भी ध्यान नहीं देते थे। सोते समय मच्छरदानी लगाना भी उनको अनावश्यक लगता था। यह कमरे में कमरा क्यों ? ऐसा मजाक में वो कहते थे। किन्तु यहाँ मच्छरदानी यह आवश्यक रहती है। गर्मी के दिनों में जमीन पर कुछ न बिछाते हुए वे सोते थे। असम की जलवायु के कारण ऐसा न करने के लिये कहने पर भी वे माने नहीं। इसी कारण कुछ ही दिनों में उनके घुटनों का पुराना दर्द आरम्भ हुआ। घुटने जखड़ने (Lock) लगे और उनको फिर से राजस्थान लौटना पड़ा।
       सोते समय तकिया की जगह प्लास्टिक का मग लेने की आदत सभी जानते है। गत् मार्च 2011 में पुत्तुर में अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक हुई। उस समय असम के ज्येष्ठ प्रचारक मा.मधुकर लिमये जी ने भैया जी से बात करते समय सहज रूप से कहा कि ‘‘भैया जी आपका प्लास्टिक का मग आपकी स्मृति के रूप में मेरे पास दें’’ भैया जी ने भी हंसकर आनन्द से अपना मग मधुकर जी को दिया। उस समय मधुकर जी को क्या पता था कि दो मास के अन्दर भैया जी उनकी स्मृति छोड़कर स्वयं परलोक जाने वाले है।
       घुटनों के दर्द के कारण भैया जी को मुश्किलें भी झेलनी पड़ी। एक बार इम्फाल से गुवाहाटी आते समय विमान में ही उनके घुटने जकड़ गये। गुवाहाटी में सभी यात्री विमान से उतरने के पश्चात भैया जी ने विमान परिचारिका से उनको पकड़कर ले जाने को कहा। वह क्रुद्ध होकर बोली ‘‘क्या बदतमीजी कर रहे है आप ? भैया जी ने अपनी समस्या बताने पर परिचारिका ने योग्य व्यवस्था की’’ इसी प्रकार की समस्या एक-दो बार रेलगाड़ी में होने से सहयोगी यात्रियों ने उतरने में सहायता की।
       काम करते समय संघ काम को प्राथमिकता यह भैया जी का स्वभाव था। जोरहाट में एक कार्यकर्ता   का अपना भोजनालय था। भैया जी केवल रात को ही भोजन करते थे। इसी भोजनालय में रात का भोजन करूंगा, ऐसा भैया जी ने जब कहा तब कार्यकर्ता   भी आनन्दित हुआ। एक-दो बार रात को भोजन करने जाने में थोड़ा विलम्ब हुआ। कार्यकर्ता   ने विनम्रता से थोड़ा जल्दी आने के लिए भैया जी को बताया। भैया जी तुरन्त बोले कि मैं यहाँ पर भोजन करने के लिए नहीं संघ का काम करने के लिए आया हूँ। अगर आपको असुविधा होती है तो मैं कल से दूसरी व्यवस्था करूंगा। कार्यकर्ता   ने भी हाथ जोड़कर कहा कि वे इसी भोजनालय में खायेंगे और स्वयं भी भैया जी के साथ ही खाना खाते थे। 
       भोजनालय में मास के अन्त में भैया जी पैसे देने लगे। कार्यकर्ता   पैसे लेने के लिए तैयार नही था। भैया जी ने कहा कि भले ही आप मुझसे लाभ न ले किन्तु पैसे लेने ही पडेंगे। अत्यन्त दुःख और अनिच्छा से कार्यकर्ता   ने अत्यन्त कम पैसे लिये। किन्तु दूसरे ही दिन उसने सारे पैसे स्थानीय नगर प्रचारक को दिये और कहा कि ये संघ की अमानत आप रखिये किन्तु भैया जी को कुछ मत कहिये।
       भैया जी को देखते ही वे कठोर संघ तपस्वी है ऐसा लगता था। दैनिक शाखा का वे सदैव आग्रह रखते थे। बैठकों में तथा बातचीत में हास्य विनोद के साथ संघ शाखा, कार्य पद्धति, कार्यकर्ता  निर्माण आदि विषयों पर वे स्वयंसेवकों को मार्गदर्शन करते थे। कम बातों में ही उसमें कितना अर्थ भरा है यह ध्यान में आता था। 
       एक बार अनौपचारिक बातचीत के समय एक कार्यकर्ता  ने एक राजनैतिक नेता पर व्यंगात्मक वाक्य कहे। भैया जी ने तुरन्त उस कार्यकर्ता  को समझाते हुए संघ की रीति-नीति के बारे में समझाया।
       आज स्वर्गीय भैया जी नहीं है किन्तु उनकी स्मृतियां कार्यकर्ताओं के मन में सदैव ताजी रहेंगी।


                                                        शशिकान्त चैथाईवाले
                                                          सिल्चर (आसाम)










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