Sunday 14 August 2011

प.पू.सरसंघचालक जी का राजसमन्द प्रवास


दैनिक भास्कर-13.8.2011
राजसमन्द (पेज नम्बर-11 और 12)








प्रतिकार शक्ति बढ़ानी होगी
14 August, 2011 [राजस्थान पत्रिका]

       राजसमंद। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत ने कहा कि कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले शरीर पर बीमारी तेजी से वार करती है। क्षमता मजबूत हो, तो रोग आस-पास नहीं फटकता। इसलिए देश और समाज को रोगों  से बचाना है, तो प्रतिकार शक्ति बढ़ानी होगी।
        केलवा में चातुर्मासरत् तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें आचार्य महाश्रमण की मौजूदगी में शनिवार को आयोजित कार्यक्रम में हजारों स्वयंसेवकों को सम्बोघित करते हुए भागवत ने कहा कि राष्ट्रीयता की मूल भावना में हर मुश्किल का समाधान छिपा है। आजादी मिल गई, मगर बड़ी, जटिल और पुरानी कठिनाइयां मौजूद हैं। उनका हल नहीं हो पाया, लेकिन स्वयंसेवक इनसे निराश नहीं होता। हर आदमी से आत्मीय भावना का विकास और विस्तार ही संघ का मुख्य मकसद है।
मकसद देश का ‘संघ’ रूप में स्थापित करना
        उन्होंने साफ कहा कि स्वयंसेवक की अवधारणा के मूल में हर देशवासी से आत्मीय भाव रखने की भावना बसी है। प्रत्येक देशवासी से मिलनसारिता बढ़ाना, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, सम्प्रदाय या प्रांत का हो और पूरे देश को एक संघ  के रूप में स्थापित करना ही एकमात्र मकसद है। जिस दिन यह सपना सच हो गया, भारत अपनी समस्याओं से मुक्ति पा लेगा।
‘संघ का अनुशासन अनुकरणीय’
        इस मौके पर आचार्य महाश्रमण ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अनुशासनबद्धता और देशभक्ति के संस्कार देखकर प्रभावित हूं। उन्होंने कार्यकर्ता का विवेचन करते हुए कहा कि जो दूसरों के लिए कार्य करता है, उपकार करता है या सेवा करता है, वह कार्यकर्ता है। कार्यकर्ता के लिए पांच मूल्य सहिष्णुता, विनम्रता, निर्भीकता, दक्षता और नैतिकता होना जरूरी बताते हुए आचार्य ने कहा कि भीतर साहस और समर्पण का दीप जलाएं, तभी अच्छा कार्यकर्ता बना जा सकेगा |

संघ समाचार 

        राजसमंद- 13 अगस्त। हम समाज की रक्षा के लिए व्रत का धारण करें, धर्म की रक्षा करें, धर्म हमारी रक्षा स्वत: करेगा। उक्त उद्गार राष्ट्रीय स्वयंसवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने शनिवार को केलवा में आयोजित कार्यक्रम के दौरान व्यक्त किए। यह जानकारी देते हुए जिला संघचालक चन्द्रप्रकाश चौरडिया ने बताया कि संरसंघचालक के राजसमंद आगमन पर शनिवार को रक्षाबंधन के  दिन संघ के स्वयंसेवकों का जिला समागम केलवा में सम्पन्न हुआ। सभी स्वयंसेवक अपेक्षित  वेश   नेकर, सफेद कमीज तथा टोपी पहनकर अनुशासित रूप से प्रवचन पाण्डाल में एकत्रित हुए। जिले  की सभी तहसीलों से स्वयंसेवक बस तथा अन्य वाहनों द्वारा केलवा पहुंचे। प्रार्थना एवं काव्य गीत के बाद भागवत ने स्वयंसेवकों को सम्बोधित करते  हुए कहा कि संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार स्वतंत्रता से पूर्व  आंदोलनों में प्रमुख कार्यकर्ता थे। सम्पूर्ण समाज को संगठित करने के लिए उन्होंने संघ की स्थापना की। स्वतंत्रता के पश्चात देश में व्यवस्थाएं बेहतर होनी चाहिए थीं लेकिन समस्याएं बढती जा रहीं हैं। इस हेतु व्यक्ति निर्माण से समाज निर्माण करना होगा।  भाषा, प्रान्त, सम्प्रदाय से जुड़ी छोटी-छोटी बातों से भावनाएं भडक़तीं हैं और हम आपस में ही एक-दूसरे का खून बहाते हैं। ऐसे समय में संघ का स्वयंसेवक सम्पूर्ण भारत को अपना मानकर राष्ट्र के प्रति प्रेम प्रकट करता है। उसके नित्य व्यवहार में राष्ट्र क प्रति प्रेम प्रकट होता है। सम्पूर्ण समाज के विरूद्ध काई बात भले ही स्वयं के लाभ की हो परंतु फिर भी वह स्वयं का नुकसान करके भी देश के लिए ही कार्य करेगा। हमारा कार्य मनुष्य निर्माण करना है, समाज की हिम्मत बढ़ाना है, और यह कार्य आपस में मिलने से ही होता है। स्वयंसेवक को इसके जिए स्वयं में सुधार करके छोटी-छोटी बातें ठीक करके समाज को सिखाने के लिए समय देना होगा। स्वयं से प्रारम्भ करके परिवार, समाज एवं देश निर्माण क लिए संकल्प एवं प्रयास करें। समाज भाषणों  से नहीं सीखता है, वह देखकर सीखता है तथा सीखकर उसी के अनुरूप आचरण करता है।  आज भ्रष्टाचार को लेकर एक बहुत बड़ा आन्दोलन देशभर में चल रहा है लेकिन इसके साथ मूल में परिवर्तन करना होगा। खुद स्वनिर्माण का कार्य हाथ में लेना होगा। व्यक्ति निर्माण के साथ समाज निर्माण करना होगा। उसके बाद  अपने आप व्यवस्था में परिवर्तन हो जाएगा। आचार्यश्री महाश्रमण ने स्वयंसेवकों को आशीवर्चन प्रदान करते हुए कहा कि कार्यकर्ता की प्रथम भावना एवं कसौटी सेवा की भावना है। कार्यकर्ता में सहिष्णुता, नम्रता एवं निर्भीकता होनी चाहिए। गुणात्मकता का विकास होना चाहिए। कुल का हित हो तो स्वयं का हित का त्याग एवं राष्ट्र का हित हो तो गांव के हित का त्याग करना चाहिए। उन्होंने कहा कि व्यक्ति के सुधरने से समाज सुधरेगा और समाज के सुधरने से राष्ट्र अपने आप ही अच्छा हो जाएगा। 



















14 August, 2011

एक बार फिर भारत को विश्व का पथ प्रदर्शक बनना होगा।

        राजसमंद- केलवा में शुक्रवार को आचार्य महाश्रमण की उत्तराध्ययन व श्रीमद्भागवत गीता पर आधारित पुस्तक 'सुखी बनो' का विमोचन करने आए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि एक बार फिर भारत को विश्व का पथ प्रदर्शक बनना होगा। भागवत शनिवार को केलवा में संघ के स्वयंसेवकों के समागम में भाग लेंगे। 
        इस मौके पर भागवत ने कहा कि आचार्य तुलसी के समय से संघ व तेरापंथ धर्मसंघ का सौहार्दपूर्ण और बौद्धिक सम्पर्क बना। इसके बाद से ही दोनों का सम्पर्क जारी है। दोनों का उद्देश्य देश में सौहार्द स्थापित करना है। भागवत ने आचार्य महाश्रमण की पुस्तक 'सुखी बनो' को सारगर्भित बताया। आचार्य महाश्रमण ने कहा कि श्रीमद्भागवत गीता भारतीय वांङग्मय का महत्वपूर्ण ग्रंथ है। 
       इसके 18 अध्याय हैं। प्रवेश युद्ध के प्रसंगों से होता है, पर आगे जाने के बाद इसमें अध्यात्म का मनोहर उपवन दृष्टिगोचर होता है। गीता जहां नितांत पद्यमय ग्रंथ है। वहीं उत्तराध्ययन पद्या और ग्रन्थ दोनों से परिपूर्ण है। उत्तराध्ययन 36 अध्याय रूपी पुष्पों से गुणित ऎसा ग्रंथ है जो आध्यात्म का सुंदर मार्गदर्शन करना है।















1 comment:

  1. The Swayamsevaks alround the universe are very much inspired by the speeches rendered by P.P.Sarsanghchalak ji and they getto work immediately dedicating themselves to the cause.The day is not far off when our Mother Bharat will adorn the universal throne once again.That day shall be the red letter dya not only to Bharat but also to the entire universe.Let us strive forward keeping this goal in mind and succeed in our mission.

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